योगगुरु रामदेव ने अपने विवादित “शरबत जिहाद” वाले बयान का बचाव करते हुए कहा कि उन्होंने न तो किसी विशेष ब्रांड का नाम लिया और न ही किसी समुदाय को निशाना बनाया। हालांकि, उनके इस बयान को सांप्रदायिक बताकर आलोचना की जा रही है और इसे लोकप्रिय पेय रूह अफ़ज़ा से जोड़कर देखा गया।
रामदेव ने कहा, “मैंने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन रूह अफ़ज़ा वालों ने खुद ही ‘शरबत जिहाद’ को अपने ऊपर ले लिया… इसका मतलब है कि वही लोग ऐसा कुछ कर रहे हैं।”
जानिए रूह अफ़ज़ा के बारे में
रूह अफ़ज़ा एक प्रसिद्ध हर्बल शरबत (ठंडा पेय) है, जिसे भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में विशेष रूप से गर्मियों के मौसम में पीया जाता है। इसकी शुरुआत 1906 में हकीम हाफ़िज़ अब्दुल मजीद ने दिल्ली में की थी। वे यूनानी चिकित्सा पद्धति के ज्ञाता थे और उन्होंने “हमदर्द” नाम की संस्था की स्थापना की, जो प्राकृतिक औषधियों पर आधारित उत्पाद बनाती थी। रूह अफ़ज़ा का उद्देश्य शरीर को गर्मी से राहत देना, प्यास बुझाना और ऊर्जा प्रदान करना था।
इस शरबत में गुलाब जल, केवड़ा, तरबूज, खरबूजा, पुदीना, नींबू जैसी ठंडी तासीर वाली जड़ी-बूटियाँ और फलों के अर्क मिलाए जाते हैं। यह दूध, पानी या फालूदा जैसे पेयों में मिलाकर पिया जाता है।
भारत में हमदर्द लैबोरेटरीज (इंडिया) इस पेय का निर्माण करती है, जबकि पाकिस्तान और बांग्लादेश में इसकी अलग-अलग शाखाएँ हैं। रूह अफ़ज़ा भले ही एक मुस्लिम व्यापारी द्वारा शुरू किया गया हो, लेकिन यह पेय आज हर धर्म, वर्ग और उम्र के लोगों के बीच लोकप्रिय है। इसे रमज़ान में इफ्तार के समय खास तौर पर पीया जाता है, लेकिन हिंदू घरों में भी यह गर्मियों में आम तौर पर इस्तेमाल होता है।
इसका स्वाद मीठा, ठंडक देने वाला और पारंपरिक है — जो पीढ़ियों से लोगों को पसंद आता रहा है।
रूह अफ़ज़ा सबकी, सभी भारतीयों की पसंद है
रूह अफ़ज़ा का स्वाद सदियों से लोगों के दिलों को भाता आया है। इसकी मिठास, गुलाब और केवड़े की भीनी खुशबू, और ठंडक देने वाली जड़ी-बूटियों का अनोखा मिश्रण इसे एक विशेष पेय बनाता है। यह न केवल स्वाद में लाजवाब है, बल्कि शरीर को ठंडक पहुंचाने के लिए भी जाना जाता है, खासकर भीषण गर्मी में।
रूह अफ़ज़ा को दूध, पानी या फालूदा के साथ मिलाकर पिया जाता है, जिससे इसका स्वाद और भी निखरता है। रमज़ान में रोज़ा खोलने के समय इसकी ठंडक और मिठास शरीर को तुरंत ताजगी देती है। वहीं, हिंदू परिवारों में भी यह गर्मी का लोकप्रिय घरेलू पेय रहा है।
इसके स्वाद की तुलना कई बार “गर्मियों की राहत” या “मीठी ठंडक” से की जाती है। यही कारण है कि रूह अफ़ज़ा सिर्फ एक शरबत नहीं, बल्कि पीढ़ियों की पसंद और परंपरा बन चुका है।
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